धर्मेंद्र श्रीवास्तव……..
मार्ग जीवंत का…..🤷🤷
मनन परिवर्तन का,
दुनिया से इतर श्रवण मन का,
स्व ऊर्जा परिवर्तन ही प्रगति है,,,,🤷🤷
कार्य की प्रबलता,
कार्य करने की क्षमता,
ऊर्जा,
ईश्वर प्रदत्त है,
और प्रकृति ने जन्म के साथ ही सभी में सन्निहित की है,
मनुष्य जीवन में उतार-चढ़ाव अवश्यंभावी है,
और इनके प्रति मनुष्य को चिंतित ना हो कर चिंतन करना चाहिए, मनुष्य जीवन में यदि प्रगति पथ पर आगे बढ़ना है, तो संघर्ष के साथ कठिनाइयों को अपने जीवन का अंग बना कर, साहस का सुरक्षा कवच तैयार करके, अग्रसर होना चाहिए,
जब हम किसी बड़े कार्य को करने निकलते हैं,
तो संकट तो आना ही है, संकटों से पार की शिक्षा हमें
हनुमानजी महाराज से मिलती है,
प्रभु श्री राम और सीता मैया से मिलती है,
जब हम अंदर से शक्तिशाली होंगे तो बाहर से मजबूती,
आने वाली विपत्तियों को चकनाचूर कर देगी,
हमारे अंदर पनप रही कमजोरियां इस प्रकार है,
“घृणा द्वेष क्रोध हिंसा कामवासना,”
यह मनुष्य की मुख्य कमजोरियां है,
इनको परिवर्तित करके ऊर्जा का भंडार अपने आप में संग्रहित किया जा सकता है,
जब हम इनको धैर्य पूर्वक परिवर्तित कर देंगे तो रूपांतरण होगा और वह श्रजन की ओर बढ़ने में हमारा सहायक होगा,
जैसे-जैसे रूपांतरण की गति बढ़ती जाएगी वैसे-वैसे मन के अंदर आनंद बहने लगेगा, योग और ध्यान प्रकृति प्रदत्त आशीर्वाद है, मनुष्य जीवन में ज्यादा नहीं तो थोड़ा थोड़ा ईश्वर के निकट जाकर मनुष्य को ध्यान अवश्य करना चाहिए, ध्यान से तात्पर्य बाहरी दुनिया को बाहर छोड़कर स्वयं को जानना, जब आप ध्यान मार्ग से स्वयं को जानने लगेंगे, तो आप अपने आसपास एक मजबूत सुरक्षा कवच का निर्माण कर लेंगे,
और फिर आपको उन्नति और प्रगति करने से कोई नहीं रोक पाएगा।
इसी का नाम,
(स्व ऊर्जा परिवर्तन ही प्रगति है!)🤷🤷