सत्य सनातन धर्म की नेवेद्य पद्धति।

शुद्धता…….💥💥
पवित्रता….💥💥
गर्व और गौरव का धर्म सत्य सनातन धर्म,
संकलन-; धर्मेंद्र श्रीवास्तव…🙏🙏
सत्य सनातन धर्म में ,

क्यों??????

श्रीफल और केले का उपयोग और प्रयोग प्रत्येक धार्मिक कार्यक्रमों,

प्रत्येक मांगलिक आयोजन ,शुभ कार्य के आरंभ में, जमीन ,जायदाद ,व्यापार, व्यवसाय ,नौकरी के आरंभ में ,धार्मिक उत्सव तिथि, वार पूजा कर्म, हवन पूजन अनुष्ठान देवीय नैवेद्य में सदैव श्रीफल और केले इन दोनों फलों का उपयोग होता है ,

आओ हम चलते हैं,

श्रेष्ठ संकलन की ओर,

और इस लेख का पठन करते करते,

यह महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करते हैं, कि हमारे पूर्वज कितने बुद्धिजीवी रहे होंगे ,आदि -अनादि काल से ही भारतवर्ष में उपरोक्त दोनों फल श्रेष्ठ फल एवं ऋतु फल की श्रेणी में आते हैं,

इन फलों के नैवेद्य के बिना,

सत्य सनातन धर्म का कोई सा भी धार्मिक अनुष्ठान, शुभ मांगलिक कार्य संपन्न नहीं होता,

होगा भी क्यों ?

जब इतने श्रेष्ठ फल जिनका नाम सुनते ही एक अलग ही अनुभूति होती है,

फलों की श्रेणी में अन्य फल भी आते हैं, जैसे ,कि आम आम को फलों का राजा कहा गया है, किंतु ?

इसकी उत्पत्ति झूठा होने के बाद ही होती है ,केला एवं श्रीफल एक ऐसे फल है,

जो अपने अछूते बीज से उत्पन्न होते हैं, और कभी झूठे नहीं होते ,

इसलिए इन्हें शुद्ध फल की श्रेणी में रखा गया है ,

प्रत्येक शुभ कार्य के आरंभ में इन फलों के नैवेद्य से मनुष्य अपने इष्ट को पसंद करता है ,और इन के भोग के साथ ही अपने प्रयोजनों को सफलतम रूप से आरंभ करता है,

इसलिए सत्य सनातन धर्म में प्रत्येक पूजन विधि पवित्रता के साथ सभ्यता के साथ आरंभ होती है,

और चिरकाल तक उन्नति कारक होकर प्रगतिशील होकर मनुष्य जीवन को धन्य बनाती है,

हम सभी सनातन धर्म के अनुयायियों को अपने इस श्रेष्ठ उत्तम और पवित्र धर्म पर गर्व होना चाहिए।