दोहरे जीवन से संदर्भित लेख,
संकलन-:
धर्मेंद्र श्रीवास्तव,
बिना कारण अमुक व्यक्ति की प्रशंसा करने वाले लोग दोहरी मानसिकता के होते हैं, समाज में कुछ लोग तो इसमें बड़े ही निपुण होते हैं,दोहरी जीवनशैली अपनाने वाले लोग इस तरह के क्रियाकलाप को बड़ी ही सहजता से लेते हैं, किंतु इस अंतराल के बाद यह कृत्य उन्हें कहीं का नहीं छोड़ता, हम त्रेता के सत्य सनातन धर्म के मुख्य स्तंभ मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की बात करें, तो वह हमें प्रेरणा देते हैं, कि इस तरह की जीवन शैली मनुष्य के लिए बहुत घातक है,
उनका जीवन,
सदासयता से भरा हुआ था, वह सदैव अपनेपन से भरे हुए थे ,अपने जीवन में वह बहुत स्पष्ट थे वनवास के कालखंड को खत्म करके जब प्रभु श्री राम अयोध्या लौटे तो सर्वप्रथम वह अपने कक्षा में नहीं गए सबसे पहले उन्होंने माता कैकई के निवास स्थान पर प्रवेश किया क्योंकि उन्हें पता था, माता के केकई लज्जा से भरी हुई है, सबसे पहले उन्होंने यथार्थ का दर्शन करते हुए माता कैकई का सानिध्य प्राप्त किया कैकई के साथ बातें साझा करके सुख का मार्ग प्रशस्त किया,, ग्रहण का अर्थ ही ऐसा होता है ,कि अंधकार की कालिमा समाप्त हो, और चीर उजियारा चहूं और फैल जाए, सूतक काल का सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है ,स्पर्श से दूरी बनाई जाए उस कालखंड के दौरान जिसमें मूर्ति स्पर्श मंदिर में प्रवेश वर्जित खानपान पर रोक हम भीतर से बाहर के वातावरण को जितना सुंदर रख सकते हैं रखना चाहिए दीप पर्व दीपोत्सव प्रकाश का पर्व है, ऊर्जा का पर्व है, नए कार्य और प्रवृत्ति के प्रस्फुटन का पर्व है, किंतु हम अंधकार और उजास के महत्व को नहीं समझेंगे तो हम अंदर और बाहर से सदैव अंधकार को ही ग्रहण करेंगे, ग्रहण काल से हमें यह शिक्षा लेना चाहिए कि यह कालखंड उस दौरान जपतप और एकांत में आराधना का होता है ,मंत्र शक्ति को ऊर्जा शिल करने का होता है, हमारे इष्ट और ग्रंथों मंत्रों के निकट पहुंचने का होता है, ऊर्जा के संग्रहण का होता है, तो आज हमें ग्रहण काल के दौरान यह संकल्प करना चाहिए कि दोहरे जीवन को त्याग कर अंधियारी और उजियारे के महत्व को स्पष्ट रूप से समझना चाहिए।
(अकारण प्रशंसा को त्याग देना चाहिए) सदैव यथार्थ का संग करना चाहिए..…💥💥