व्यक्तित्व हास का, मूल कारण, अन्य कीआलोचना।

करे व्यक्तित्व का विकास,…✍️

सत्य का साथ पाकर…..🌈

संकलन-;✍️✍️
धर्मेंद्र श्रीवास्तव,
व्यर्थ आलोचना व्यक्तित्व के नाश होने का मूल कारण है,😔😔
संसार में सबसे सरल कार्य है,
किसी अन्य व्यक्ति की निंदा और आलोचना करना, निंदा करते समय व्यक्ति के समझता है ,

कि मेरा कुछ नहीं जाएगा ,

किंतु उस समय अमुक व्यक्ति के सन्मुख वह अपना सर्वस्व नष्ट कर लेता है,

झूठी टीका टिप्पणी करने में तो,

सहज और सरल मालूम पड़ती है,

किंतु ??

ऊर्जा के साथ जैसे ही वह संवाद के माध्यम से संप्रेषित होती है,

उलट रूप में आपके व्यक्तित्व को नष्ट करने वाली होती है,

एक बार बोला गया झूठ,

हजार बार झूठ बोलने को प्रेरित करता है,

उसी तरह एक बार की गई अनर्गल निंदा कई बार झूठ बोलने को बढ़ावा देती है,😔😔

झूठी निंदा करने की ओर अग्रसर करती है ,

और धीरे-धीरे यह मनुष्य की आदत बन जाती है ,

और दैनंदिन कार्य पद्धति का हिस्सा बनने के बाद जो मनुष्य निंदा के अंधकूप में डूब जाता है,

उसका इस जन्म में इस अंधकूप से बाहर निकलना असंभव हो जाता है,

ऐसा व्यक्ति,

😔😔

सदैव ,दुखी एवं  द्रवित रहता है,

उसका मान सम्मान नष्ट होकर कहीं भी उसे ठोर नहीं मिलता ,

वह अपने साथ परिवार समाज और अपने आसपास को भी लज्जित कर देता है ,

ऐसा व्यक्ति जहां खड़ा हो जाता है,

वहां से लोग दूरी बनाना आरंभ कर देते हैं,

इसलिए जीवन में,

सदैव निंदा से दूर रहकर,

अनर्गल बातों से दूर रहकर अपने व्यक्तित्व निर्माण को सत्य के संवाहक बनकर गति देते रहना चाहिए,

सत्य का साथ करने वाला व्यक्ति सदैव ऊर्जावान होकर सर्वत्र वंदित होता है।