देश की एक नामी – गिरामी पत्रिका ने कुछ बरस पहले एक सर्वे करवाया था, जिसमें यह निश्कर्ष निकला था कि विशेषकर सोशल मीडिया में प्रेषित किए जाने वाले संदेशों को काफी संख्या में पाठक (दर्शक) पढ़ते / देखते ही नहीं हैं। मजेदार बात तो इसके आगे की है कि, अधिकांश लोग बिना पढ़े ही अपनी प्रतिक्रिया भी दे देते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि बिना पढ़े और बिना सोचे – समझे अपनी प्रतिक्रिया देने से कभी – कभी असहज स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
कोरोना की दूसरी लहर के समय जब स्वास्थ्य सेवाएँ चरमरा गई थीं। उस समय जब मोबाईल की घंटी बजती थी, तब किसी अनहोनी घटना की खबर होगी, यह सोचकर ही मोबाईल उठाने से दहशत सी होने लग जाती थी। उस समय सोशल मीडिया पर तो बधाई और शुभकामनाओं के संदेशों का टोटा पड़ गया था। प्राय: हर दिन ही विनम्र श्रद्धांजलि, सादर नमन, ओम शांति जैसे सांत्वना के शब्दों को ही लिखना पड़ता था। वाट्सएप या फेसबुक पर किसी की तस्वीर देखते ही आशंका से दिल दहल जाता था, कहीं अप्रिय घटना तो नहीं हो गई। इसका असर कोरोना का संक्रमण आंशिक रूप से कम होने के बाद भी बना रहा। ऐसा ही एक वाकया हुआ, वाट्सएप ग्रुप में शामिल करने पर बधाई और स्वागत करने के स्थान पर श्रद्धांजलि दे दी गई। हुआ यूं कि हमारे एक मित्र को कालेज के पूर्व छात्रों के वाट्सएप ग्रुप में सम्मिलित किया गया। जैसे ही उनकी फोटो देखी, तुरंत ही दो – तीन अति उत्साही वाट्सएप प्रेमियों ने उन्हें श्रद्धांजलि दे दी। जबकि फोटो का परिचय और अन्य जानकारी फोटो के नीचे ही लिखी हुई थी। लेकिन श्रद्धांजलि देने वालों ने जानकारी पढ़ने की जहमत भी नहीं उठाई। मित्र ने जैसे ही देखा, तुरंत बताया कि भाईयों, मैं अभी जीवित हूँ।
कोरोना से उबरने का सिलसिला जारी है और इसी के साथ बधाई और शुभकामनायें देने का दौर फिर शुरू हो गया है। अब लोग दूसरी लहर की भयावह स्थिति को भूलना चाहते हैं। इसी खुशी में बधाई और शुभकामनाओं देने की बाढ़ सी आ गई है। अब तो लोग अपने दूर – दूर के संबंधियों के जन्मदिन, शादी की सालगिरह आदि की जानकारी देकर माहौल को खुशनुमा बनाना चाहते हैं। इसी चक्कर में पिछले दिनों एक मित्र की अचानक असमय मौत हो गई। फेसबुक पर उनकी तस्वीर पोस्ट की । कोरोना की लहर का असर कम होने का असर यह हुआ कि एक व्यक्ति ने उन्हें जन्मदिन की बधाई दे डाली। फिर और दो-तीन लोगों ने भी बधाई दे दी, बिना पढ़े ही । तब पोस्ट करने वाले सज्जन ने बताया कि भाई, अपने मित्र, फेसबुक के सदस्य का आकस्मिक निधन हो गया है, मौका बधाई देने का नहीं, श्रद्धांजलि देने का है।
ये तो अच्छा है कि सोशल मीडिया पर लिखे गए शब्द, बोले गए शब्द जैसे नहीं हैं यानि सोशल मीडिया से पोस्ट की गई सामग्री को हटाने की सुविधा है जबकि बोले गए शब्दों के बारे में तो यह कहा जाता है… मुंह से निकले शब्द और धनुष से निकला तीर ( बंदूक से निकली गोली भी कह सकते हैं ) वापस नहीं आते और जो नुकसान होता है, उसकी भरपाई बहुत ही मुश्किल होती है। कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो हर मौके पर बधाई देने से नहीं चूकते। कुछ बरस पहले जबलपुर के एक समाचार पत्र में एक बधाईवीर ने मातम के त्यौहार की भी बधाई की प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी। भला हो, संपादक महोदय की नजर पड़ गई और वह समाचार छपने से रह गया ।
दरअसल, हर कोई छोटी – बड़ी उपलब्धि के साथ तीज – त्यौहार, दिवसों पर बधाई और शुभकामनायें देना अच्छी बात है। इससे तो सौहार्द्र ही बढ़ता है। सोशल मीडिया ने भी बधाई और शुभकामनाओं के संदेशों को और बढ़ावा देने में भी अहम भूमिका निभाई है। फेसबुक ने बधाई को विशेष दर्जा दे रखा है। जैसे ही बधाई लिखते हैं, बधाई का रंग ही बदल जाता है। रंग बदलने के साथ ही मधुर आवाज के साथ ही रंग – बिरंगे गुब्बारे भी स्क्रीन पर फैल जाते हैं । इससे लिखने वाले का भी बधाई देने का आनंद दोगुना हो जाता है। भले ही जिसको बधाई दी है, वह इसका आनंद नहीं ले पाता।
अब तो सोशल मीडिया पर बधाई और शुभकामनाओं के संदेशों के साथ ईमोजियों की भी मौज हो गई है। लिखने का मन नहीं हो तो कोई सुंदर सा ईमोजी को ही भेज दो। वह आपका मकसद पूरा कर देगा और बधाई प्राप्तकर्ता को भी भरपूर आनंद देता है। मेरा मानना है कि ईमोजी का उपयोग करने वाले लिखने में थोड़ा कंजूस होते हैं। कुछ लोग तो हाथ जोड़ लेते हैं। अब हाथ जोड़ने का क्या अर्थ लगाए? यही कि, आपका बहुत – बहुत धन्यवाद। ऐसे ही प्रोत्साहित करते रहिए। इसके विपरीत यह भी अर्थ लगाया जा सकता है कि, बहुत हो गया भाई, अब रहम करो ।
सच पूछा जाए तो अब बधाई और शुभकामनाओं के आनंद या खुशी की अनुभूति भी क्षणिक हो गई है। लेकिन यह भी सही है कि वर्तमान समय बधाई और शुभकामनाओं का स्वर्णकाल है। हमारे देश में वर्ष भर त्यौहार, जयंती, दिवस के साथ जन्मदिन, विवाह की वार्षिक वर्षगांठ और पच्चीसवीं या पचासवीं वर्षगांठ, बेटा, भाई, भतीजा, और अन्य करीबी रिस्तेदारों के जन्मदिन, उनकी उपलब्धियां, नियुक्तियाँ ( राजनीतिक, निजी व शासकीय ) आदि अवसरों सहित खुशियों के मौके लगातार मिलते ही रहते हैं। इन मौकों पर बधाई और शुभकामनायें देना लाजिमी होता है। बधाई और शुभकामनायें देना भी चाहिए, क्योंकि वर्तमान समय में आपा-धापी, दौड़-धूप और तनाव भरे माहौल में ये खुशियाँ बांटने के क्षण व्यक्ति को ऊर्जा से संचारित कर देते हैं। लेकिन वास्तविकता तो यह भी है कि बधाई और शुभकामनाओं की अवधि बहुत ही सीमित होने के कारण इनसे मिलने वाली खुशी भी क्षणिक हो गई है। पहले पत्रों के माध्यम से मिलने वाली बधाई और शुभकामनाओं के संदेश वर्षों तक सँभाल कर रखते थे। अब तो सोशल मीडिया से प्राप्त इन संदेशों को सँभाल कर रखना जरा मुश्किल हो गया है। कभी – कभी तो जल्दबाज़ी में हम इन संदेशों को स्वयं अपने हाथों से गलती से मिटा देते हैं। तब हमारे पास अफसोस करने के अलावा और कोई चारा भी नहीं रहता। हम संदेश भेजने वाले से यह तो नहीं कह सकते कि, कृपया वह संदेश मुझे फिर से भेज दें।
पत्रों और फोन पर दिये जाने वाले बधाई, शुभकामनाओं और श्रद्धांजलि के संदेश व्यक्ति को अधिक आत्मीयता वाले लगते हैं जबकि सोशल मीडिया पर दिये गए संदेश केवल औपचारिकता मात्र लगते हैं। और इसी के चलते संदेशों की हेरा-फेरी हो जाती है। बधाई के स्थान पर श्रद्धांजलि के संदेश और श्रद्धांजलि के संदेश के स्थान पर बधाई दे दी जाती है। मानव गलतियों का पुतला माना जाता है और गलतियाँ होते ही रहती हैं। सोशल मीडिया पर की गई गलतियों को सुधारने का विकल्प देकर सेवा प्रदाताओं ने बहुत बड़ा उपकार किया है। यदि यह सुविधा उपलब्ध नहीं होती तो अब तक बहुत बड़ी आबादी के बीच मन – मुटाव, तनाव, शीतयुद्ध, और न जाने क्या – क्या होता, इसकी कल्पना भी नहीं का जा सकती ।
मधुकर पवार,
स्वतंत्र लेखक