… क्या आप मुझे जानते हैं? मैंने ईमानदारी से लिख दिया… नहीं – मधुकर पवार, स्वतंत्र लेखक

 

फेसबुक की एक महिला मित्र से कुछ दिनों तक नमस्ते तक बातचीत होती रही। एक दिन उसने पूछ ही लिया… क्या
आप मुझे जानते हैं? मैंने ईमानदारी से लिख दिया… नहीं।

– मधुकर पवार, स्वतंत्र लेखक

 

 

 

 

 

बड़ा अजीब सा सवाल है…क्या आप मुझे जानते हैं? जब कोई अनजान व्यक्ति यह प्रश्न पूछता है तब इस सवाल की पृष्ठभूमि से अनेक सवाल भी पैदा हो जाते हैं। मसलन क्या मैं भी इसे जानता हूँ? मैं क्या इससे कभी मिला हूँ? आशंका यह भी होती है कि शायद कहीं मुलाक़ात हुई होगी लेकिन याद नहीं आ रहा है। इसी तरह के अनेक सवाल जेहन में आते हैं। याद्दाश्त पर बहुत ज़ोर डालने पर भी यह प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाता है।

दरअसल जब से सोशल मीडिया का चलन बढ़ा है… यह प्रश्न अधिक प्रासंगिक हो गया है। हाल ही में मेरे फेसबुक पर काफी संख्या में फेसबुक उपयोगकर्ताओं ने फेसबुक मित्र बनाने का आग्रह (फ्रेंड रिक्वेस्ट) किया। अनेक नाम जाने पहचाने से लगे तो अधिकांश को फेसबुक मित्र बना लिया। कुछ ऐसे भी थे जिन्हें मैं नहीं जानता था लेकिन ऐसा लगता था कि शायद इनसे कभी कहीं मुलाक़ात हुई है। फिर मन में यह भी संदेह होता रहा कि शायद फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजने वाला मुझे जानता है लेकिन मुझे याद नहीं आ रहा है कि वह व्यक्ति कौन है? अलबत्ता अनेक ऐसे लोगों को भी फेसबुक मित्र बना लिया जिन्होंने आग्रह किया था। मुझे यह भी मुगालता हो गया कि मुझे जानने वालों की संख्या बहुत अधिक है तभी तो इतनी बड़ी संख्या में लोगों ने फेसबुक मित्र बनाने का आग्रह किया है।

मेरे अनेक मित्र हैं जिनके फेसबुक मित्रों की संख्या हजारों में है। अनेकों ने तो अपने नाम के साथ एक, दो, तीन लिखकर मित्र बनाए हैं जिसका सीधा सा यही मतलब निकलता है कि उनके हजारों मित्र हैं जिनमें से अधिकांश आभासी मित्र हैं जिनसे वे न तो कभी मिले हैं और न ही वे उन्हें जानते हैं। जब “एक” ने आभासी मित्रों की संख्या का निश्चित मात्रा के आंकड़े को छू लिया तो “दो” में फेसबुक मित्रों को जोड़ना शुरू कर दिया। इसमें अपने शहर, प्रदेश, देश की सीमा ही नहीं बल्कि विश्व के किसी भी देश के नागरिक होते हैं। और मजेदार बात तो यह भी है कि जितने भी फेसबुक मित्र हैं, उनमें से अधिकांश आपस में भी एक दूसरे को नहीं जानते। फेसबुक पर आभासी मित्र बनाने में माहिर ऐसे लोग मेरे ही नहीं बल्कि फेसबुक का उपयोग करने वाले सभी लोगों के आदर्श होते हैं। मेरे भी अनेक फेसबुक मित्र आदर्श हैं और मैं भी उनके नक्शेकदम पर चलने की कोशिश कर रहा हूँ। दरअसल ऐसे हजारों की संख्या में फेसबुक मित्र बनाने वाले अक्सर बड़ी शान से कहते हैं…मेरे तो तीन अकाउंट हैं। कोई कहता है… मेरे तो चार हैं… और यह संख्या बढ़ते ही जा रही है। तब मुझ जैसे लोगों को बड़ी ग्लानि महसूस होती है… हम तो हजार पर भी नहीं पहुंचे। फिर मन को समझाने के लिए किसी गुरू का मंत्र से बड़ी तसल्ली होती है। वह मंत्र है… सुखी रहने के लिए किसी से भी तुलना मत करो।

हजारों की संख्या में फेसबुक मित्र बनाने वाले अक्सर बड़ी शान से कहते हैं…मेरे तो तीन अकाउंट हैं। कोई कहता है… मेरे तो चार हैं… और यह संख्या बढ़ते ही जा रही है। तब मुझ जैसे लोगों को बड़ी ग्लानि महसूस होती है… हम तो हजार पर भी नहीं पहुंचे।

फेसबुक के ऐसे गुरुओं की प्रेरणा से ही मैंने भी जाने – अनजाने फेसबुक मित्रों के आग्रह को स्वीकार करना शुरू कर दिया और देखते ही देखते काफी संख्या में मित्र बन भी गए। एक दिन एक फेसबुक महिला मित्र (अनजानी) ने हाय लिखकर भेजा। मैंने भी सौजन्यवश नमस्ते लिख दिया। कुछ दिनों तक तक तो केवल नमस्ते तक ही बातचीत होती रही। एक दिन फेसबुक महिला मित्र ने पूछ ही लिया… क्या आप मुझे जानते हैं? मैंने ईमानदारी से लिख दिया… नहीं। सौजन्यवश मैंने भी पूछ लिया… क्या आप मुझे जानती हैं? उसने भी लिखा… नहीं। नमस्ते का सिलसिला यहीं थम गया। इस घटना से एक बात तो सिद्ध हो ही गई कि इस आभासी दुनिया में सब कुछ वर्क फ्रॉम होम ही चल रहा है। मित्रता भी। इस घटना ने मेरा यह भ्रम भी तोड़ दिया कि मुझे बहुत लोग जानते हैं। मुझे यह भी अहसास हो गया कि जब मेरे पड़ोसी और मोहल्ले के रहवासी ही मुझे नहीं पहचानते तब भला अन्य शहरों और विदेशों के लोग कब, क्यों और कैसे जानते होंगे?

संत महात्मा भी कहते हैं …पहले स्वयं को जानो। स्वयं को जानने के लिए अपने भीतर उतरो। जब स्वयं को पहचानने लगोगे तो यह चिंता नहीं रहेगी कि तुम्हें कितने लोग जानते हैं। यदि हमारा स्वयं से साक्षात्कार हो गया तो जीवन धन्य हो गया वरना वही ढाक के तीन पात। मुझे एक गाना भी याद आ रहा है…क्या मिलिये ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छुपी रहे, नकली चेहरा सामने आए असली सूरत छुपी रहे। यह गाना आज भी प्रासंगिक है और मुझे लगता है, जब तक आभासी दुनिया अस्तित्व में रहेगी, यह यथार्थ भी साथ – साथ चलता रहेगा। यह इसलिए भी प्रासंगिक है क्योंकि जब हम आभासी मित्र को जानते भी नहीं… उसका लिंग क्या है? कहाँ का निवासी है? जो तस्वीर उसने फेसबुक पर चस्पा की है वह उसी की है या और किसी की। इसी तरह अनेक बातें हैं जो सत्यता से परे होती हैं या हो भी सकती हैं। ऐसी स्थिति में हमारे पास केवल विश्वास करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं रहता। तब भला चस्पा की गई तस्वीर को देखकर कैसे विश्वास कर लें? एक विकल्प है … अनजाने लोगों से मित्रता ही नहीं करें। यदि ऐसा करने लग जाएँ तो वास्तविक मित्रों की संख्या इतनी सीमित हो जाएगी कि ऊंगलियों पर गिन लो।

वैसे व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक केवल इसी उधेड़बुन में लगा रहता है कि लोग उसे जाने। यदि इसमें सफल नहीं हो पाता तो वह दूसरों का भी सहारा लेने में किसी भी तरह का संकोच नहीं करता। कभी-कभी ऐसे मौके आ जाते हैं तब व्यक्ति का अहम सर्वोच्च शिखर पर आ जाता है तब वह बड़े ही जोश से कहता है… मुझे जानते नहीं? अब समय आ गया है कि सबसे पहले हम अपने आप को जानें। यदि कोई दिक्कत आ रही है तो सुबह पाँच बजे उठकर टेलीविज़न पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम देखना शुरू कर दें जिनसे स्वयं को जानने के गुर जरूर मिल जायेंगे। ब्रह्ममुहूर्त में उठने एक बड़ा फायदा यह भी होगा… रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी जो कोरोना से बचाने में मदद करेगी।