अगस्त 1983 में हल्का युद्धक विमान यानी लाइट कॉन्बैट एयरक्राफ्ट प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई थी। इसके 18 वर्षों बाद 4 जनवरी 2001 को तेजस ने पहली उड़ान भरी। साल 2003 में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजयेपयी ने इसे तेजस नाम दिया। बताया जाता है कि ये नाम संस्कृत भाषा के 20 नामों में से चुना गया। संस्कृत में तेजस शब्द का मतलब होता है असीम शक्ति यानी सबसे शक्तिशाली।
तेजस की खासियत
तेजस में एक साथ 9 तरह के हथियार लोड और फायर किए जा सकते हैं।
तेजस में एंटीशिप मिसाइल, बम और रॉकेट भी लगाए जा सकते हैं।
तेजस पर हवा से हवा, हवा से धरती और हवा से पानी पर हमला करने वाले हथियार लोड कर सकते हैं।
तेजस विमान सुपर सोनिक फाइटर जेट है जो 15 किलोमीटर की ऊंचाई तक उड़ सकते हैं।
तेजस में जैमर प्रोटेक्शन तकनीक है ताकि दुश्मन की सीमा के करीब उसका कम्युनिकेशन बंद न हो।
तेजस को 42 फीसदी कार्बन फाइबर, 43 फीसदी एल्यूमीनियम एलॉय और टाइटेनियम से बनाया गया है।
500 कंपनियां एचएएल का साथ देंगी
वायुसेना को तेजस विमान देने के लिए एचएएल के साथ इस सौदे के आकार की व्यापकता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि करीब 500 एमएसएमई क्षेत्र की स्वदेशी कंपनियां इनके निर्माण में एचएएल के साथ काम करेंगी। यह सौदा भारतीय वायुसेना की मदद करेगा। इससे लड़ाकू विमान स्कवाडन की संख्या में गिरावट को रोकने में मदद मिलेगी।
तेजस मार्क-1 से ज्यादा शक्तिशाली
आसमानी उड़ान की दूरी में इजाफा होने और आयुध ले जाने की क्षमता में बढोतरी के साथ ही नया संस्करण तेजस मार्क-1 से अधिक ताकतवर होगा। वायु सेना के एक स्क्वाड्न में 16 से 18 विमान होते हैं। एचएएल से 83 तेजस मिल जाने के बाद वायुसेना के बेड़े में कम से कम चार स्क्वाड्न की बढोतरी होगी। वायुसेना में अभी तेजस की कुल दो स्क्वाड्न हैं और 83 तेजस लड़ाकू विमान मिलने के बाद इनकी संख्या छह हो जाएगी। भारतीय वायुसेना ने 73 तेजस मार्क-1ए के लिए एचएएल के साथ 48 हजार करोड़ की डील की थी। तेजस मार्क-2 को बनाने की प्रक्रिया साल 2022 के अगस्त या सितंबर में शुरू हो जाएगी। साल 2023 में इसके हाई स्पीड ट्रायल्स होंगे और उत्पादन 2025 में होगा। तेजस मार्क-2 की ईंधन क्षमता 3400 किलोग्राम होगी। तेजस मार्क-2 की गति होगी मैक 2 यानी 3457 किलोमीटर प्रतिघंटा। यह पचास हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ सकता है। तेजस मार्क-2 ब्रह्मोस एनजी मिसाइल भी लगाई जा सकती है। इसके अलावा निर्भय, स्टॉर्म शैडो, अस्त्र, मीटियोर, असराम और क्रिस्टल मेज जैसी मिसाइलें लगाई जा सकती है। इस विमान की ताकत प्रीसिशन गाइडेड बम, लेजर गाइडेड बम, अनगाइडेड बम और स्वार्म बम लगाए जा सकते हैं।
मिग-21 को रिप्लेस करेगा तेजस
वैसे तो भारत के पास कई लड़ाकू विमान हैं लेकिन ज्यादातर अवसरों पर मिग-21 का इस्तेमाल होता है। यह भारत का सबसे पुराना फाइटर जेट है। इसका इस्तेमाल दुश्मन को सीमा पर रोकने के लिए होता है। मिग 21 को 1964 में भारतीय सेना में शामिल किया गया था। इसे सोवियत संघ द्वारा निर्मित किया गया था। लेकिन वायु सेना के लड़ाकू विमानों में होने वाले हादसों और उसमें पायलटों की जान गंवाने के सबसे अधिक मामले मिग-21 में ही हुए। उस वक्त से लेकर इसके 490 बार क्रैश होने की बात सामने आई। इसके अलावा करीब 200 पायलट की इससे जान जा चुकी है। लैडिंग स्पीड इसके पीछे एक बड़ी वजह रही। इसकी लैंडिग स्पीड की वजह से इंजन में आग लगने की समस्या कई उत्पन्न हुई। 1991 में सोवियत के विघटन के बाद इसके पार्ट्स भी मिलने मुश्किल हो गए थे। हादसों की वजह से इसे उड़न ताबूत भी कहा जाता है।
हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स कंपनी
एरोनॉटिक्स कंपनी यानी एचएएल भारत की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है। एचएएल को मैसूर सरकार के सहयोग से वाचंद हीराचंद द्वारा 23 दिसंबर 1940 को बंगलुरु में हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट कंपनी के रूप में स्थापित किया गया था। दिसबंर 1945 में इसे उद्योग एवं आपूर्ति मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में लाया गया और जनवरी 1951 को रक्षा मंत्रालय ने हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट प्राइवेट लिमिटेड को अपने प्रशासनिक नियंत्रण में लिया गया। 1 अक्टूबर 1964 को भारत सरकार द्वारा जारी विलय आदेश के अंतर्गत हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड और एरोनॉटिक्स इंडिया लिमिटेड को अपने प्रशासनिक नियंत्रण में लिया गया।