आजाद भारत में शिक्षा पर बात होते हुए भी सबसे ज्यादा अनदेखी शिक्षा की ही हुई। कमीशन पर कमीशन बने लेकिन शिक्षा का मूलभूत ढांचा औपनिवेशिक भारत वाला ही रहा। उसमें परिवर्तन की कोशिश कम ही नजर आई। आजादी के बाद राजनैतिक जमातों ने माना कि एक बेहतर समाज के निर्माण में शिक्षा बहुत ही महत्वपूर्ण है लेकिन सिर्फ ऐसा माना- वास्तविक शिक्षा निति पर कुछ भी ठोस नहीं हो पाया। किसी भी राष्ट्र की आधारशिला वहां की शिक्षा व्यवस्था होती है,
शिक्षा शास्त्र में सिखाया जाता है की पाठशाला एक कारखाना है और छात्र कच्चा माल, और इसी फैक्ट्री में विविध विषय, अनुभव, प्रशिक्षण से विद्यार्थियों को प्रोडक्ट बनाकर समाज के सामने रखा जाता है। शिक्षा को लेकर कोई नीति बने और उसका पाठ चंद बिंदुओं में होकर सिमट जाए. एक नागरिक समाज में इस गंभीर विषय का ऐसा अगम्भीर पाठ, शिक्षा को लेकर हमारी सोच, सजगता और चिंतन को आईना दिखाने जैसा है. इस तरह के पाठ का नतीजा ही है कि हम राजनैतिक हलकों में भी शिक्षा को लेकर वह गंभीरता नहीं देखते हैं जो कि होनी चाहिए. राजनितिक मंच पर शिक्षा से राष्ट्र सुधार की महज बाते ही होती आई है, केवल ‘विश्व गुरु’ कह देने भर से तो काम नहीं चलेगा। उसके लिए शिक्षा जैसे अहम मुद्दे को लेकर गंभीर होना पड़ेगा। बेसिक शिक्षा से लेकर व्यावहारिक शिक्षा तक पर चिंतन करना पड़ेगा और किये हुवे चिंतन को प्रत्यक्ष कर्म में उतरना पडेगा। सीधे तौर पर मैकाले की वर्चस्ववादी नीति से बाहर निकलना होगा तभी वह नींव या फाउंडेशन मजबूत होगी जिसका जिक्र बस मिड-डे मील तक सीमित है। इसलिए नई शिक्षा नीति 2020 को वर्तमान के साथ बीते हुए कल और आने वाले कल के परिप्रेक्ष्य में भी समझना होगा।
नई शिक्षा व्यवस्था
भारत में चल रही यूरोपियन शिक्षा व्यवस्था से कितनी असरदार हैं। कोरोना काल शिक्षा के लिहाज़ से कि स तरह बुरा साबि त हुआ है या हो रहा है ये बात आप और हम बेहतर तरीके से जानते है। एक राष्ट्र के वि कास के लि ए आवश्यक है की उस राष्ट्र के नागरि क शि क्षि त हो। शिक्षित राष्ट्र ही वि कास की सीढ़ी चढ़ते है। इसीलि ए एक देश के लि ए उसकी शि क्षा व्यवस्था भी उतनी ही आवश्यक है जि तनी की अर्थव्यवस्था। साल 2020 शि क्षा का काला साल कहा जा सकता है जि समेवि द्यार्थि यों ने पुरे साल वि द्यालयों में कदम तक नहीं रखा, तो वही केंद्र सरकार ने शि क्षा नीति में सुधर के उद्देश्य से नई शि क्षा नीति लागू कर दी जि से सभी के परामर्श से तैयार कि या गया है। कि सी नीति के व्यव्हार में आनेके बाद देश में उसके पक्ष और वि पक्ष में चर्चा ओं का दौर शुरू हो जाता है। ठीक उसी तरह नई शि क्षा नीति को भी इन चर्चाओं का सामना करना पड़ रहा है। मैकाले की नीतियों से हम बाहर आ चुके होते. भारत की सभी भाषाओं का विकास हो चुका होता और समाज, वैज्ञानिक चेतना से लैस होता, जबकि ऐसा नहीं है, इसलिए नई शिक्षा नीति को एक साथ आशा और संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है इस नीति में बहुत से प्रावधान तो वही हैं जो पिछली नीतियों से चले आ रहे हैं और आगे की नीतियों में भी चलते रहेंगे, ऐसा लगता है. क्योंकि शिक्षा को लेकर हमारी गंभीरता आज भी बहुत कम है। नीति निर्माता शिक्षा को ‘राज्य का विषय’ कम ही मानते हैं। वह धीरे-धीरे शिक्षा को निजी हाथों में देने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। शिक्षा का यह निजीकरण दूसरी शिक्षा नीति के आने के बाद से जोर-शोर से होने लगा था।
गाँधी जी के अनुसार शिक्षा किसी भी छात्र के शारीरि क और मानसिक विकास का एक साधन है। चर्चा का विषय अब ये है की 1986 की शि क्षा नीति की कि न त्रुटि यों को दूर करने जा रही है ये 2020 की शि क्षा नीति जि सकी ज़रूरत वर्तमान में पड़ रही है। साथ ही क्या यह नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति उन उद्देश्यों को पूरा करने में सक्षम होगी जो किसी राष्ट्र को शिक्षित राष्ट्र बनाता है। कहा जा रहा है की मानव संसाधन मंत्रालय का नाम भी नई शिक्षा नीति 2020 की घोषणा के साथ ही बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दि या गया है। उम्मीद की जा रही है की इस नीति के साथ ही साल 2030 तक स्कूली शि क्षा में 100% GER के साथ-साथ पूर्व-विद्यालय (Pre – nursery ) से माध्यमि क स्तर (Secondary ) तक शिक्षा के सार्वभौमि करण किया जायगा।
सबसे पहले तो ये जान लेना बहुत ज़रूरी है की नई शिक्षा नीति क्या है, और किस तरह ये 1986 की, नीति से अलग है।
स्कूली शि क्षा संबंधी प्रावधान
● नई शि क्षा नीति में 5 + 3 + 3 + 4 डि ज़ाइन वाले शैक्षणि क संरचना का प्रस्ताव कि या गया है जो 3 से 18
वर्ष की आयु वाले बच्चों को शामि ल करता है।
● NEP 2020 के तहत HHRO द्वारा ‘बुनि यादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मि शन’
(National Mission on Foundational Literacy and Numeracy) की स्थापना का प्रस्ताव कि या गया
है। इसके द्वारा वर्ष 2025 तक कक्षा-3 स्तर तक के बच्चों के लि ये आधारभूत कौशल सुनि श्चि त कि या
जाएगा।
शारीरिक शिक्षा
● विद्यालयों में सभी स्तरों पर छात्रों को बागवानी, नियमित रूप से खेल-कूद, योग, नृत्य, मार्शल आर्ट को
स्थानीय उपलब्धता के अनुसार प्रदान करने की कोशिश की जाएगी ताकि बच्चे शारीरि क गति विधियों एवं
व्यायाम वगैरह में भाग ले सकें।
पाठ्यक्रम और मूल्यांकन संबंधी सुधार
● इस नीति के अंतर्गत अब कला और विज्ञान, व्यावसायि क तथा शैक्षणि क विषयों एवं पाठ्यक्रम व
पाठ्येतर गति विधियों को एक सामान विषय मानकर पढ़ाया जायगा।
असल मसला इनके क्रियान्वयन का ही है।
शिक्षा पर जीडीपी का 6% खर्च करने की बात 1986 में कही गई थी लेकिन हुआ कभी नहीं। त्रिभाषा फ़ॉर्मूला, संस्कृत को बढ़ावा देना आदि चीजों को अपनाने की बात तब भी थी लेकिन जमीन पर कुछ नहीं उतरा। शिक्षा की हालत दिनों-दिन खराब होती गई. शिक्षा को ‘वस्तु’ (कॉमोडिटी) के तौर पर देखा जाने लगा। WTO में बकायदा शिक्षा को उत्पाद के रूप में रखा गया। राज्य ने हर शिक्षा नीति के साथ शिक्षा से स्वयं को मुक्त और उसे निजी हाथों में देने की कोशिश जारी रखी। उसी का परिणाम वह ‘प्राइवेट स्कूल’ हैं जिन्हें ‘पब्लिक स्कूल’ कहा जाता है। जनता और शिक्षा के साथ इससे बड़ा मजाक क्या होगा कि लाखों में फ़ीस लेने वाले स्कूलों को ‘पब्लिक स्कूल’ कहा जाता है। यही शिक्षा की नीति और नीयत है। इसलिए नई शिक्षा नीति को ध्यान से समझने की जरूरत है। साथ ही यह सोचना होगा कि शोध की गुणवत्ता एम.फिल. खत्म कर देने से कैसे बढ़ जाएगी ? कॉलेजों को स्वायत्त कर देने से उच्च शिक्षा से कितने लोग वंचित रह जाएँगे ? यह उच्च शिक्षा के निजीकरण की तरफ पहला कदम तो साबित नहीं होगा ? जहाँ स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक 40 से 50 प्रतिशत शिक्षकों के पद रिक्त हैं वहां कैसे नई शिक्षा नीति के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। इस तरह के कई सवाल और आशंकाएं हैं जिनका जवाब भविष्य के गर्भ में है।
● कक्षा-6 से ही शैक्षि क पाठ्यक्रम में व्यावसायि क शिक्षा को शामिल कर दिया जाएगा और इसमें इंटर्नशिप
(Internship) की व्यवस्था भी की जाएगी।
● ‘राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद’ (National Council of Educational Research and
Training- NCERT) द्वारा ‘स्कूली शि क्षा के लि ये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा’ (National Curricular
Framework for School Education) तैयार की जाएगी।
● छात्रों के सम्पूर्ण विकास के लिए अब कक्षा-10 और कक्षा-12 की परीक्षाओं में बदलाव कि या जाएगा।
इसमें भविष्य में समेस्टर या बहुवि कल्पीय प्रश्न आदि जैसे सुधारों को शामिल किया जा सकता है।
● छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन के लि ये मानक-निर्धारक निकाय के रूप में ‘परख’ (PARAKH) नामक एक
नए ‘राष्ट्रीय आकलन केंद्र’ (National Assessment Centre) की स्थापना की जाएगी।
● छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन तथा छात्रों को अपने भविष्य से जुड़े निर्णय लेने में सहायता प्रदान करनेके
लि ये ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (Artificial Intelligence- AI) आधारित सॉफ्टवेयर का प्रयोग।
भारत में मौजूदा शिक्षा नीति 1986 में लागू की गयी जो की यूरोपीय शिक्षा नीति से ली गयी थी। इसमें बाद में
संशोधजन किया गया था परन्तु इस बार नीति को बदला गया है।
राष्ट्रीय शिक्षानीति , 1986
● इस नीति का उद्देश्य असमानताओं को दूर करने वि शेष रूप से भारतीय महिलाओं, अनुसूचित
जनजातियों और अनुसूचित जाति समुदायों के लिये शैक्षिक अवसर की बराबरी करने पर वि शेष ज़ोर देना
था।
● इस नीति ने प्राथमिक स्कूलों को बेहतर बनाने के लिये “ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड” लॉन्च कि या।
● इस नीति ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के साथ ‘ओपन यूनिवर्सिटी’ प्रणाली का विस्तार
किया।
● ग्रामीण भारत में जमीनी स्तर पर आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लि ये महात्मा गांधी
के दर्शन पर आधारित “ग्रामीण विश्वविद्यालय” मॉडल के निर्माण के लिये नीति का आह्वान कि या गया।
पुरानी शिक्षा में अधिकतर शिक्षा की मात्रा पर ध्यान दिया गया न की गुणवत्ता पर। पुरानी शिक्षा नीति का मुख्य
उद्देश्य था सब को शिक्षा प्रदान करना जबकि नई शिक्षा नीति इसके साथ साथ कौशल शिक्षा पर भी ज़ोर देती है।
नई शिक्षा नीति के अंतर्गत विद्यार्थियों को न केवल शिक्षित बल्कि कौशल बनाना भी बनाना ताकि वह अपने
भविष्य का सही चुनाव कर सके।
इस शिक्षा नीति को पढने के बाद एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि अब तक तीनों शिक्षा नीतियों में संस्कृत, हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं के विकास की बात कही गई है लेकिन इनमें कहीं भी निजी स्कूलों, कॉलेज और विश्वविद्यालयों में संस्कृत, हिंदी आदि के पठन- पाठन पर कोई जोर नहीं दिया गया है। ऐसे में भाषा का विकास कैसे होगा ? उसको बढ़ावा देने का क्या अर्थ है ? इस तरफ भी विचार करना चाहिए। क्या नए शिक्षा निति क्या ऐसा सभ्य समाज निर्माण कर पाएंगी, जो कथाये हम नैतिकता के आधार पर सुनते आये वह क्या समाज में घटित होती देख पाएंगे? क्या समाज में सविधान के वह उच्चतम मूल्य नागरिको के आचरण से स्थापित होंगे? एक इंजीनियर,डॉक्टर के साथ साथ क्या समाज में आदर्श नागरिक एवं आदर्श इंसान की निर्माण हो पायेगा? वर्तमान में इन गंभीर विषयो पर ना तो चर्चा है और ना ही चिंतन विडम्बना यह है की शिक्षा पेट भरने का साधन बन रहा है और डिग्री योग्यता निर्धारण का? समाज और इंसान को बदलने का मादा अगर किसी अस्त्र-शास्त्र में है तो वह है शिक्षा. मात्र शिक्षा का मकसद केवल उसे बेहतर तरीके से बनाने में ही नहीं बल्कि उस बेहतरीन व्यवस्था/ मूल्यों को धरातल पर उतरना में भी है. डॉ. बाबा साहब आंबेडकर का वह विचार आज भी प्रासंगिक है, सविधान चाहे जितना बेहतरन हो मात्र उसे लागु करने वाले हाथ अगर पाक और साफ़ नहीं तो सविधान का मूल्य शुन्य ही रहेगा.
– साहिबा खान